Thursday, September 6, 2012

मरीचिका


This is something which I wrote a little while back when I decided to try my hand at writing hindi poems . Give it a read , if you know a bit of hindi .


आज फिर से ;
आह निकली है इस दिल से |
मैं प्यासा पंछी इन राहों मैं कहीं भटक रहा हूँ ,
एक शाद्वल की तलाश मैं इन रास्तों की खाक चन रहा हूँ |
दूर देखी हुई मरीचिका की एक झलक ,
इन सुखी हुई पल्खों मैं भर लाती एक ललक |
पर करीबी जब उस च्चालावे को तोडती ,
नाज़ुक शीशे की तरह उन उमीदों को चकनाचूर करतीं  |



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